|| मेरी औकात ||

|| मेरी औकात ||



सर ऊंचा करके दृढ़ता से
जा रहा था जीवन की राहों में।
समय को आया गुस्सा तो
पड़ा रहा रोते हुए उन्ही राहों में।

खिलते फूल की सजावट से
महक रहा था मेरा मन।
अब समय की विकट हंसी में
मुरझा गए सपनों का बन।

भविष्य की सुंदरता को लेकर
हर पल में छुपा था सुंदर जीवन।
समय ने क्रूरता से उड़ा दी
उन सभी पलों को करते हुए मौन।

अब मैं समझ गया हूँ
मेरी औकात क्या है समय के आगे।
बस चुप होकर चलना है
और सहना है हर स्थितियों को आगे।

शून्य से निकला मेरा अस्तित्व
कुछ तो हांसिल कर ही लेगा।
पर समय तो जंजीरों में फसाकर
मेरा कभी चलने नहीं देगा।

रचना अच्युत कुलकर्णी



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